क्यों प्रधानमंत्री मोदी जी इस साल और मज़बूत होते जा रहे हैं ।
बिहार के राजनीतिक स्तर पर कई संसदीय क्षेत्र हैं, जिनमें से एक है मधुबनी। यहाँ से भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता अशोक यादव लोकसभा सांसद हैं, जिनके पिता हुकुमदेव नारायण यादव भी पहले संसद सदस्य रहे हैं। यह एक परिवारिक सांसद की उदाहरण है, जो अपने जीवन भर गरीबी से निकलकर राजनीति में कदम रखा।
मधुबनी के बगल में स्थित दरभंगा भी एक और संसदीय क्षेत्र है, जिससे BJP के सांसद गोपाल जी ठाकुर हैं। ठाकुर ने विधायक बनने के बाद राजनीतिक मंच पर एक कदम आगे बढ़ने का संकल्प किया था, और उन्हें कीर्ति आजाद की समर्थन की जरूरत पड़ी थी जिससे उन्हें संसद का मौका मिला।
यहाँ से एक और संसदीय क्षेत्र है झंझारपुर, जिससे जनता दल (युवाजन) के सांसद रामप्रीत मंडल हैं। हालांकि, इसके बावजूद, मंडल की क्रियाशीलता के बावजूद, इस क्षेत्र में दी गई विकास योजनाएं लोगों की यादों में बनी रहीं हैं नहीं।
2019 में ये सांसदीय क्षेत्रों से चुने गए, लेकिन उन्होंने जीत के बाद अपने कर्मों के माध्यम से समाज में सक्रियता को बढ़ाने का कार्य किया। इन सभी सांसदों ने राजनीतिक रूप से अपने क्षेत्रों के विकास के लिए प्रयास किया है, लेकिन कुछ आंकड़ों के अनुसार, उनके प्रयासों का सही असर नहीं हुआ है।
इस परिस्थिति में यह सवाल उठता है कि क्या 2024 के आम चुनावों में इन सांसदों की अकर्मण्यता से बीजेपी को चुनौती होगी। उत्तर है – नहीं। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, और राजस्थान के चुनावी परिणाम दिखाते हैं कि इस अकर्मण्यता के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चरित्र बहुत ही प्रभावकारी है। उनके लोककल्याणकारी योजनाएँ सीधे बैंक खाते और घर की रसोई में दिखती हैं और इससे लोगों को सीधे लाभ होता है। साथ ही, बीजेपी एकमात्र वह पार्टी है जो चुनाव लड़ने और जीतने का कला में निपुणता दिखाती है।
2014 के आम चुनावों के बाद से बीजेपी को इस बारे में बड़ी प्रशंसा मिली है कि उसकी मशीनरी हमेशा चुनाव के लिए तैयार रहती है। एक चुनाव जीतने के बाद, उनके नेता जश्न मनाने की बजाय, वह दूसरे मोर्चे पर उतर जाते हैं। प्रशंसा इस बात को लेकर भी है कि स्थानीय चुनावों तक बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व ताकत दिखाता है और नतीजों की चिंता किए बिना चुनाव को किसी युद्ध की तरह लड़ती है।
लेकिन इन प्रशंसाओं के बावजूद, बीजेपी ने उन साहसिक फैसलों की ओर ध्यान नहीं दिया गया है, जिनसे लेने में किसी भी राजनीतिक दल को संस्कृति तक जा सकती है। उदाहरण के लिए, 2018 के दिल्ली नगर निगम चुनावों में पार्टी ने सभी पार्षदों का टिकट काट दिया था और इनके पारिवारिक सदस्यों को भी टिकट नहीं दिया था। 2018 के विधानसभा चुनावों में बुरी तरह हारने के बाद, छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव के दौरान सभी सांसदों को उतारा गया था। इस बार मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में न केवल सांसदों, बल्कि मोदी मंत्रिमंडल के भी कुछ सदस्यों को उतारा गया था।
साहसिक निर्णयों की दुनिया में बीजेपी, जो खुद अपनी भूलों से सीखती है, आज एक नए दृष्टिकोण से प्रकट हो रही है। सितंबर 2023 में ऑपइंडिया ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी जिसमें बताया गया कि तेलंगाना में बीजेपी के पाँव अचानक से फिसलने लगे हैं और उसकी जगह कॉन्ग्रेस बढ़ रही है। 3 दिसंबर 2023 को हुए तेलंगाना विधानसभा चुनाव ने भी दिखाया कि बीजेपी ने इस राज्य में कई राजनीतिक भूलें की हैं, लेकिन यह भी दरअसल बीजेपी नेतृत्व द्वारा इसे महसूस किया गया था। इसलिए उसने तेलंगाना से बंदी संजय को हटा लिया, लेकिन तमिलनाडु में ऐसा नहीं किया जहां अन्नामलई को बनाए रखा गया।
चुनाव सिर्फ निर्णयों और रणनीतियों से ही नहीं जीते जा सकते हैं। लोगों को मतदान केंद्र तक लाने के लिए एक और अहम तत्व है – उम्मीद। अच्छे दिनों की उम्मीद। यह उम्मीद एक चेहरा पैदा करती है, जो लोगों में आशा की किरणें बूँदित करता है। यह उम्मीद व्यक्ति को उन योजनाओं की ओर प्रवृत्त करती है जिनसे सीधे लोगों को लाभ होता है, और वे अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन का अहसास करते हैं। यह उम्मीद उन्हें भविष्य में और बेहतर सपने देखने के लिए प्रेरित करती है।
बीजेपी ने इस उम्मीद को 13 सितंबर 2013 को खोजा था, जब उसने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किया। मोदी ने आम लोगों के मन में ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ की उम्मीद जगाकर 2014 के आम चुनावों को जीता। प्रधानमंत्री बनने के बाद, उन्होंने अच्छे दिन लाने वाली योजनाओं की सफलता को दिखाया और इसका परिणामस्वरूप 2019 के आम चुनावों में बीजेपी ने अकेले 303 सीटें जीती।
मोदी सरकार ने गरीबों को बैंकिंग सिस्टम में शामिल करने के लिए ‘जन धन योजना’ शुरू की, जिसमें जीरो बैलेंस पर खाता खोलने का सुविधाजनक उपाय दिया गया। इस योजना के तहत खाता धारकों को चेक बुक, पासबुक, और दुर्घटना बीमा के साथ-साथ ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी भी मिलती है। ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी के कारण, जनधन खाता धारक बैलेंस नहीं रखने पर भी अपने खाते से 10,000 रुपए निकाल सकते हैं। इस योजना से अब तक करीब 51 करोड़ लोग लाभान्वित हो चुके हैं और कोविड संकट जैसे समय में इसने गरीबों तक सीधे पैसे पहुँचाने में मदद की है।
कोरोना महामारी के दौरान भारत सरकार ने ‘प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना’ की शुरुआत की थी, जिसे हाल ही में 2028 तक बढ़ाने का निर्णय लिया गया है। इस योजना से 80 करोड़ से अधिक लोगों को महीने भर में मुफ्त राशन मिलता है। इसके साथ ही, ‘उज्ज्वला योजना’ के तहत गरीबों को रसोई में मुफ्त गैस सिलिंडर पहुंचाने की पहल भी की गई है, जिसमें बीपीएल कार्डधारकों को साल में 12 गैस सिलिंडर प्रदान किए जाते हैं। इससे होने वाली सब्सिडी सीधे उनके बैंक खाते में जमा की जाती है। अब तक, उज्ज्वला योजना का लाभ 2023 तक 9.60 करोड़ लोगों को पहुंचा है और आने वाले तीन वर्षों में और 75 लाख नए कनेक्शनों का लक्ष्य रखा गया है।
देश के छोटे, लघु और सीमांत क्षेत्रीय किसानों के लिए ‘प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना’ ने भी बड़ा बदलाव लाया है, जिसके अंतर्गत सालाना 6 हजार रुपए की आर्थिक मदद की जाती है। इससे करीब 8 करोड़ किसानों को सीधा लाभ हो रहा है। उसके बाद, श्रमिकों के लिए भी ‘पीएम विश्वकर्मा योजना’ शुरू की गई है, जिसमें 13000 करोड़ रुपए का निवेश होगा।
इसके अलावा, 10 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण और ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के तहत घर-घर बिजली और पानी पहुंचाने की योजना भी लागू की गई है। इसके साथ ही, गरीबों के लिए आयुष्मान भारत योजना और प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा, सुरक्षा बीमा योजनाएं भी चल रही हैं। इन नौ सालों में, मोदी सरकार ने जनकल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से आम जनता को सीधा लाभ पहुंचाने का प्रयास किया है, जिससे लोगों की जीवनशैली में सुधार हो रहा है। इन योजनाओं के कारण, जनता के बीच मोदी का लोकप्रियता और समर्थन भी बढ़ रहा है, जो 2024 के आगामी चुनावों के लिए एक बड़ी संकेत हो सकता है।