L. K.Advani के लिए सड़क पर उतर गईं प्रोफेसर शारदा सिन्हा- हिंदी पत्रिका

 

शारदा सिन्हा कि बात पे समस्तीपुर के सर्किट हाउस में ही छठ करने को तैयार थीं महिलाएँ

ओछी राजनीति ने समस्तीपुर पर दो कलंक लगा दिए। एक ​ललित नारायण मिश्रा की हत्या और दूसरी लाल कृष्ण आडवाणी की गिरफ्तारी।

80 वर्षीय अखिलेश्वर प्रसाद नारायण सिंह याद करते हैं जब उन्होंने 22 और 23 अक्टूबर 1990 को बिहार के समस्तीपुर के सर्किट हाउस से लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार किया गया था। सिंह, जो समस्तीपुर के राम निरीक्षण आत्मा राम कॉलेज में इतिहास के प्रोफेसर रह चुके थे, समस्तीपुर बीजेपी के अध्यक्ष भी थे।

अखिलेश्वर प्रसाद नारायण सिंह ने यह कहा कि उम्र के कारण अब वे पुरानी बातें भूलने लगे हैं, लेकिन उन्हें वह आक्रोश आज भी याद है जो उस समय आडवाणी की गिरफ्तारी के बाद समस्तीपुर के आम लोगों में दिख रहा था। प्रोफेसर शारदा सिन्हा, जो समस्तीपुर वीमेंस कॉलेज में हिस्ट्री की प्रोफेसर रहीं हैं, ने बताया कि उन्हें आक्रोश आज भी रोमांच भर देता है। सिन्हा अब अपनी बेटी के साथ पंजाब के मोहाली में रह रही हैं।

प्रोफेसर शारदा सिन्हा ने बताया कि आडवाणी की गिरफ्तारी की खबर सुनते ही 23 अक्टूबर 1990 की सुबह बड़ी संख्या में महिलाएँ समस्तीपुर की सड़क पर उतर गईं थीं। उन्होंने ऑपइंडिया को बताया, “वह खरना का दिन था। मैं पहली बार छठ करने जा रही थी। महिलाओं ने तय किया कि वे घर नहीं जाएँगी। सर्किट हाउस में ही छठ मनाएँगी। इसके बाद प्रशासन के हाथ-पाँव फूल गए थे।”

सिन्हा के बयान के अनुसार, अखिलेश्वर प्रसाद सिंह ने साबित किया कि सर्किट हाउस के पास एक समय में लीची का एक बाग था, जिसमें एक तालाब भी था, और वहां महिलाएं छठ मनाने का निर्णय लिया गया था। इस घटना के बाद, बीजेपी नेता कैलाशपति मिश्र के समझाने के बाद महिलाएं घर लौटने के लिए तैयार हो गईं थीं।

सिंह के अनुसार, उस समय टेक्नोलॉजी जैसी साधने उपलब्ध नहीं थीं, और जिन लोगों ने आडवाणी की गिरफ्तारी की खबर सुनी थी, वे सीधे सर्किट हाउस की ओर बढ़े। लोग सर्किट हाउस के गेट तोड़ने का काम कर रहे थे। आडवाणी को गिरफ्तार करने के बाद, हेलिकॉप्टर से उसे दुमका के मसानजोर डैम स्थित गेस्ट हाउस ले जाया गया था, लेकिन लोगों का आक्रोश बढ़ रहा था। इसके बाद, कैलाशपति मिश्र ने पटेल मैदान में एक सभा का ऐलान किया।

उस सभा को याद करते हुए, सिन्हा ने कहा, “सुबह के 8 बजे के आसपास, समस्तीपुर शहर में लोग ऐसे उमड़ पड़े थे जैसे कोई रैली हो। कैलाशपति मिश्र ने पटेल मैदान की सभा में लोगों को शांत कराया। उन्होंने कहा कि दोनों सरकारें (बिहार और केंद्र की) चाहती हैं कि कुछ हो जाए ताकि बीजेपी को बदनाम किया जा सके, उसे दोषित किया जा सके। इसके बाद ही लोग शांत हुए। महिलाएँ खरना करने के लिए पटेल मैदान से अपने घर चली गईं, लेकिन समस्तीपुर शहर में अगले कई दिनों तक इस मामले को लेकर गहमागहमी बनी रही। लोग इस गिरफ्तारी से आक्रोशित थे।”

उल्लेखनीय है कि आडवाणी को जब गिरफ्तार किया गया था, तब केंद्र में वीपी सिंह की और बिहार में लालू प्रसाद यादव की सरकार थी। आडवाणी 25 सितंबर 1990 को सोमनाथ से रथ लेकर अयोध्या के लिए निकले थे। लेकिन गंत्व्य तक पहुँचने से पहले ही 22 अक्टूबर की देर रात उन्हें समस्तीपुर के सर्किट हाउस से गिरफ्तार कर लिया गया था।

बिहार सरकार के इस निर्णय को याद करते हुए प्रोफेसर शारदा सिन्हा बताती हैं, “उस समय लालू यादव मिल जाते तो लोग क्या कर देते कल्पना नहीं की जा सकती है। लोग कह रहे थे ई पराछुत (नीच) सरकार है। इसको मोल तो चुकाना होगा।” अखिलेश्वर प्रसाद नारायण सिंह के अनुसार आडवाणी को 22 अक्टूबर के दिन में ही हाजीपुर से समस्तीपुर आना था। लेकिन वे रात के करीब एक बजे सर्किट हाउस पहुँचे थे। इसके बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया था। वे बताते हैं कि आडवाणी की उस यात्रा को लेकर उस समय लोगों में खासा उत्साह था। समाज हिंदू के तौर पर एकजुट हो रहा था। आडवाणी की प्रतीक्षा में समस्तीपुर उस दिन पूरी रात जागा रहा था।

उन्होंने बताया कि लोगों की नाराजगी देखकर प्रशासन कैलाशपति मिश्र के नेतृत्व में बीजेपी कार्यकर्ताओं को समस्तीपुर से बसों में भरकर मुजफ्फरपुर ले गई। वहाँ जेल में उनकी गिरफ्तारी दिखाकर छोड़ दिया गया था। लेकिन इससे लोगों का गुस्सा शांत नहीं हुआ। इस घटना के विरोध में अगले एक-दो दिनों तक लोग गिरफ्तारी देते रहे थे।

उल्लेखनीय है कि आडवाणी की इस रथ यात्रा को 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुँचना था। भले आडवाणी को गिरफ्तार कर इसके पहिए बीच रास्ते में रोक दिए गए थे, लेकिन इसने रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन को घर-घर तक पहुँचा दिया। इसने राम मंदिर की ऐसी लौ जगाई कि रथ जिस रास्ते से गुजरता वहाँ की मिट्टी लोग सिर पर लगा लेते।

आडवाणी जब गिरफ्तार हुए थे तब नरेंद्र मोदी भी थे साथ

सोमनाथ से अयोध्या की ओर बढ़ते हुए रथी लाल कृष्ण आडवाणी, इस सफल यात्रा के सारथी नहीं थे, बल्कि आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनके साथ थे। उस समय मोदी गुजरात भाजपा के संगठन महामंत्री बने हुए थे और इस यात्रा के माध्यम से वे राष्ट्रीय स्तर पर उभर रहे थे।

आडवाणी को समस्तीपुर में गिरफ्तार किये जाने पर भी, मोदी उनके साथ मौजूद थे। हालांकि, गिरफ्तार करके सीधे आडवाणी को दुमका के गेस्ट हाउस ले जाया गया था। प्रोफेसर शारदा ने बताया, “नरेंद्र मोदी जी ने जब गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में कुर्सी पकड़ी थीं, तब लोग यह कह रहे थे कि गिरफ्तारी के समय वे भी आडवाणी के साथ थे। लेकिन मैं न तो सर्किट हाउस के भीतर थी और न मोदी उस समय इतने पॉपुलर थे। मुझे हाथ से अपनी गिरफ्तारी का इशारा करते आडवाणी आज भी याद है।”

अखिलेश्वर प्रसाद नारायण सिंह ने इस पर जोड़ते हुए कहा, “हम उस समय उन्हें पहचानते नहीं थे। लेकिन मोदी जी भी उनके साथ थे। जब मोदी ने राजनीति में कदम रखा तो यह बात सामने आई। लेकिन हम उस समय उन्हें पहचानते नहीं थे।”

इस रथ यात्रा के संदर्भ में पत्रकार हेमंत शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘युद्ध में अयोध्या’ में मोदी की भूमिका को विशेष रूप से उजागर किया है। उन्होंने मोदी को इस यात्रा के रणनीतिकार और शिल्पकला का उदाहरण बताया है। उनके अनुसार, यात्रा के मार्ग और कार्यक्रम को लेकर आडवाणी को भी बाद में ही सूचना मिली थी, जबकि मोदी ने सबसे पहले 13 सितंबर 1990 को इसकी जानकारी दी थी। वह कहते हैं कि इस यात्रा के बारे में हर जानकारी का मोदी ही स्रोत थे। कुछ जानकारियाँ तो आडवाणी को भी बाद में मिलती थीं। नीलांजन मुखोपाध्याय की किताब ‘नरेंद्र मोदी: एक शख्सियत, एक दौर’ में भी इस अद्वितीय यात्रा के दौरान मोदी की महत्वपूर्ण भूमिका का वर्णन किया गया है।

हाल ही में, लालकृष्ण आडवाणी ने अपने एक लेख में इस यात्रा को याद करते हुए लिखा है कि उन्हें उस समय में यह आभास हुआ था कि अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर जरूर बनेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस लेख का समर्थन करते हुए कहा है कि भगवान राम ने अपने मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए नरेंद्र मोदी को अपना भक्त चुना, जिनकी देखरेख में मंदिर की इमारत बन रही है।

आडवाणी और मोदी ने सिखाया धर्म ही राजनीति है

स्वतंत्र भारत की राजनीति में दशकों तक एक समूह ने अपनी प्रभावशाली भूमिका निभाई है, जिसने तुष्टिकरण की राजनीति को बढ़ावा दिया। इस समूह ने अयोध्या में रामलला की मूर्ति को हटाने की प्रयास किया था और उन्होंने इसे सेकुलरिज्म का परिचायक माना। इस समूह ने इस विचार को बड़े धूमधाम से प्रमोट किया कि धर्म को राजनीति से अलग रहना चाहिए। यह विचार देश को बड़े प्रभावशाली रूप में प्रभावित किया और धर्मनिरपेक्षता को भूल चुका था। यद्यपि धर्म और राजनीति दोनों का मुख्य उद्देश्य सुशासन की स्थापना है, लेकिन इस समूह ने इस विचार को भ्रांति भरा बना दिया। आडवाणी और मोदी की रथ यात्रा ने स्पष्ट किया कि धर्म और राजनीति एक अन्य को पूरक हैं, और इन्हें एक दूसरे के शक्तिशाली साथी के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने यह भी बताया कि राजनीति का अर्थ ही धर्म है।

हमें गर्व है कि आज का भारत इस सोच के साथ अग्रसर हो रहा है। यह उन विरासतों का सार्थक है जिन्होंने सुनिश्चित किया कि 22 जनवरी 2024 को अयोध्या में भव्य राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह का मुख्य आयोजक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होंगे, और इस अद्वितीय क्षण में भारतीय राजनीति के दिग्गज लाल कृष्ण आडवाणी इसके साक्षी बनेंगे।

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