इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ज्ञानवापी ढाँचे में पूजा अर्चना को लेकर चल रहे विवाद पर रोक लगाने की मांग को खारिज कर दिया है। उन्होंने जिला कोर्ट के आदेश को मान्यता देते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट की रोहित रंजन अग्रवाल वाली एक सदस्यीय बेंच ने यह निर्णय दिया है। उन्होंने मस्जिद कमिटी की याचिका को खारिज कर दिया। उन्होंने इस निर्णय को 15 फरवरी, 2024 को जारी किया था, जिसे आज सुनाया गया। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इस सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि वर्ष 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार में ज्ञानवापी के भीतर पूजा पर रोक लगाना गैर कानूनी था। उन्होंने राज्य सरकार से कानून व्यवस्था को नियंत्रित करने को कहा है।
मस्जिद कमिटी ने 31 जनवरी, 2024 को वाराणसी के जिला कोर्ट में ज्ञानवापी के भीतर व्यासजी के तहखाने में पूजा की अनुमति देने के विरोध में याचिका दायर की थी। उनका दावा था कि ज्ञानवापी परिसर का वह भाग मस्जिद का हिस्सा है, इसलिए वहाँ पूजा करना विवादास्पद है।
31 जनवरी, 2024 को एक आदेश में कहा गया था कि ज्ञानवापी परिसर के भीतर व्यासजी के तहखाने में हिन्दू पूजा अर्चना की अनुमति है, और उन्हें झरोखा दर्शन की अनुमति भी दी गई है। प्रशासन ने इस निर्णय के बाद रात में ही पूजा और आरती का आयोजन किया था। मस्जिद कमिटी इस निर्णय के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा चुका है, जहां कोर्ट ने सुनवाई से इंकार कर दिया है।
मस्जिद कमिटी ने अपने याचिका में दावा किया कि व्यासजी का तहखाना मस्जिद का हिस्सा है, और उसमें मूर्तियाँ स्थापित नहीं की जा सकती हैं। लेकिन इलाहाबाद हाई कोर्ट ने उनके यह दावे को ठुकरा दिया और पूजा की अनुमति जारी रखी। दूसरी ओर, हिन्दू पक्ष ने कहा कि यहाँ पर लगातार पूजा होती आई है, इसलिए पूजा जारी रखनी चाहिए।
हाल ही में, ज्ञानवापी में ASI द्वारा किए गए सर्वे की रिपोर्ट भी सामने आई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, सर्वे करने गई टीम ने विवादित मस्जिद के तहखानों से कई मूर्तियाँ और शिवलिंग खोजे हैं। ASI रिपोर्ट में उजागर हुआ कि यहाँ पहले एक विशाल हिन्दू मंदिर स्थित था। इसके बाद इन तहखानों को जानबूझ कर बंद किया गया था। इस निर्णय के बाद, अब मस्जिद कमिटी को सुप्रीम कोर्ट का समर्थन करने की संभावना है।