16 साल के राम चन्दर यादव कि गई थी जान।घर पर नहीं होने दिया अंतिम संस्कार
धर्मनगरी अयोध्या में, सोमवार (22 जनवरी 2024) को भगवान राम की जन्मभूमि पर बन रहे मंदिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा की युद्धस्तर पर तैयारी की जा रही है। इस अद्भुत घड़ी में, देश उन बलिदानी रामभक्तों की ओर से श्रद्धा और समर्पण की भावना को जाहिर कर रहा है, जोने पिछले पांच सदियों से अपने आस-पास के क्षेत्रों को जन्मभूमि के नाम पर न्योछावर कर दिया हैं। और मिली जानकारी के अनुसार, सन 1990 में मुलायम सिंह सरकार के दौरान, पुलिस द्वारा किए गए पहले नरसंहार की तैयारी में शामिल था। इस दुखद घड़ी में, 30 अक्टूबर को, 8 दिन पहले, कारसेवकों की जानकारी पर पुलिस ने अयोध्या से सटे एक गाँव में दबिश देने के लिए कार्रवाई की थी। उस समय, पुलिस ने गोलियों की बौछार कर दी थी, जिससे तीन रामभक्त ग्रामीणों की मौके पर मौत हो गई, जबकि कई और घायल हो गए थे।
22 अक्टूबर 1990 के इस नरसंहार के पहले शहीद राम चन्दर यादव थे। तब, दुबौलिया थाना प्रभारी को गाँव सांडपुर में कारसेवकों की मौजूदगी की सूचना मिली थी, जिसने पुलिस को बताया कि गाँव में जमा कारसेवक अयोध्या की तरफ कूच कर रहे हैं। पुलिस ने गाँव की घेराबंदी की और ऊपर से आदेश मिलते ही गोलियों की बौछार की गई। इस विरोधी कार्रवाई के दौरान, जब ग्रामीण लोग पुलिस के खिलाफ उतरे और बलिदानी राम चन्दर यादव के घर गए, हमने उनके परिवार से विवादित परिस्थितियों की जानकारी प्राप्त की है।
नाबालिग राम चन्दर यादव को मारी गई थी गोली।
राम चन्दर यादव मूलतः बस्ती जिले के गाँव बरसाँव टेढ़वा के निवासी थे। यह थानाक्षेत्र दुबौलिया में स्थित है। यहाँ से सरयू नदी का दूसरा किनारा लगभग 1 किलोमीटर की दूरी पर है, जो कि अयोध्या नगर की सीमा को छूती है। हमने राम चन्दर के घर पहुँचते ही उनके भाई रामनाथ यादव को मौजूद पाया। रामनाथ यादव ने हाल ही में खेतों में काम करके लौटा था। उन्होंने बताया कि राम चन्दर यादव उन पाँच भाइयों में तीसरे नंबर पर आते थे। 22 अक्टूबर को, जब उन्होंने अपने बलिदान दिए, तब उनकी आयु लगभग 16 साल थी। उनका विवाह अभी नहीं हुआ था। उनके बचे हुए भाइयों ने जीवन की मुश्किलों का सामना करते हुए उनका सहारा बनाए रखने के लिए अपनी मेहनत करते रहे।
बिना छप्पर और बिना प्लास्टर का घर है
राम चन्दर यादव का परिवार अत्यंत गरीबी में बिता रहा है। उनके घर को दो हिस्सों में बाँटा गया है। पहला हिस्सा छप्पर से बना हुआ है, जबकि दूसरे हिस्से में कुछ हिस्सा पक्का मकान है, जिसमें न तो फर्श है और न ही प्लास्टर। खेती-किसानी के लिए अपने घरवालों ने कर्ज लेकर एक ट्रैक्टर-ट्रॉली भी खरीदी है। अब लगभग 60 साल के हो चुके रामनाथ यादव ने बताया कि उनके बेटे के गम में पहले पिता राम नारायण यादव ने प्राण त्याग दिए थे और कुछ दिनों बाद माता भी गुजर गईं। बकौल रामनाथ यादव ने अपने भाई राम चंदर के दुःख के समय में घर के खर्चों में हाथ बँटाना शुरू किया था, लेकिन उसी दौरान उन्होंने मुलायम सरकार के पुलिस की गोलियों का शिकार हो गए।
सिर में मारी गई थी गोली।
राम चन्दर यादव ने भगवान राम और महादेव शिव के प्रति अपनी पूरी श्रद्धाभावना दिखाई थी। 22 अक्टूबर 1990 की घटना को याद करते हुए रामनाथ यादव ने अपने भावनात्मक पहलुओं को साझा किया। उन्होंने बताया कि उस समय राम के नाम पर पुलिस के अत्यधिक इत्तेफाक के खिलाफ गाँव के लोग समूचे एक खेत में एकठे हो गए थे। इस घड़ी में पुलिस ने गाँववालों को अचानक घेर लिया और अज्ञात दिशा से गोलियाँ बरसाईं। इस हमले में राम चन्दर यादव खेतों में ही लहूलुहान होकर गिर पड़े, लेकिन उनका इलाज नहीं हुआ। सिर में गोली लगने के कारण रामचंदर ने अधिक समय तक जिन्दा नहीं रह पाए, और कुछ ही देर में उनके प्राण पखेरू उड़ गए।
दूसरी ओर, राम चन्दर यादव का परिवार बहुत गरीबी में है। उनका घर दो हिस्सों में बाँटा गया है, जिसमें पहला हिस्सा एक छप्पर से बना हुआ है, जबकि दूसरे हिस्से में कुछ हिस्सा पक्का मकान है, जिसमें न तो फर्श है और न ही प्लास्टर। खेती-किसानी के लिए उनके परिवार ने कर्ज लेकर ट्रैक्टर-ट्रॉली भी खरीदी है। इसके बावजूद, रामनाथ ने बताया कि उनके बेटे के गम में पहले पिता राम नारायण यादव ने प्राण त्याग दिए थे और कुछ दिनों बाद माता भी गुजर गईं। बकौल रामनाथ ने अपने भाई राम चंदर के दुःख के समय में घर के खर्चों में हाथ बँटाना शुरू किया था, लेकिन उसी दौरान वे मुलायम सरकार में पुलिस की गोलियों का शिकार हो गए।
बाकी भाइयों को पकड़ने के लिए कि गई थी छापेमारी
रामनाथ यादव ने हमें बताया कि गोलियाँ चलने के दौरान अफरातफरी में यह भी पता नहीं चल पाया कि कौन किधर गया। पुलिस के जाने के बाद लोगों ने अपने परिजनों को खोजना शुरू किया, लेकिन राम चन्दर घर नहीं लौटे थे। उनकी परिजनों को मिली जानकारी के अनुसार, राम चन्दर को गोलीबारी में मारा गया था और उनका शव बस्ती जिला अस्पताल में रखा गया था। घर वाले लाश लेने के लिए निकलने के दौरान, गाँव में पुलिस ने फिर से दबिश मार दी।
दबिश के दौरान पुलिस ने दिवंगत राम चन्दर के बाकी भाइयों को भी पकड़ने की कोशिश की और उन्हें गिरफ्तार करने का प्रयास किया। पुलिस के डर से बलिदानी के बाकी भाई भी घर छोड़ कर भाग गए। ऐसे में, राम चन्दर के बूढ़े पिता और माता ही घर में बचे। रामनाथ के मुताबिक, पुलिस का तब ऐसा खौफ था कि उनके यादव बहुल गाँव के बाकी युवा सदस्य भी घर छोड़ कर कहीं छिप गए थे।
गाँव नहीं आने दी थी नाबालिक राम चन्दर कि लाश
रामनाथ ने साझा किया कि 22 अक्टूबर 1990 का दिन उनके परिवार के लिए एक अद्वितीय और कठिन समय था। उन्होंने विवरण किया कि पुलिस की छापेमारी से डरकर उनके बाकी भाइयों और गाँव के लोगों के बाग़िचे होने के बाद, उनके बूढ़े माता-पिता को लगभग 50 किलोमीटर दूर बस्ती जाना पड़ा। इस समय, पुलिस के कड़े पहरे के कारण गाड़ियाँ भी नहीं चल रही थीं। राम नारायण यादव और उनकी पत्नी ने अपने बेटे के शव तक पहुँचने के लिए कैसे संघर्ष किया, इसका अपने पुत्र रामनाथ को भी नहीं पता था।
जब राम नारायण यादव अपनी पत्नी के साथ बस्ती अस्पताल पहुँचे, तो उन्हें बताया गया कि उनके बेटे की लाश पोस्टमॉर्टम हाउस में है। इसके बाद, राम नारायण को भारी पुलिस फोर्स ने रोक लिया जब वह अपने बेटे की लाश को उठाने की कोशिश कर रहे थे। उन्हें स्पष्ट आदेश थे कि वे अपने बेटे का शव गाँव नहीं ले जा सकते थे। मृतक के पिता ने हिन्दू धर्म के अनुसार अंतिम संस्कार की बहुत दुहाई दी, लेकिन तत्कालीन अधिकारी टस से मस नहीं हुए।
आखिरकार, राम चन्दर यादव का दाह संस्कार बस्ती जिला अस्पताल से थोड़ी दूर शहर के किनारे स्थित नदी के किनारे श्मशान घाट पर हुआ। इस समय, उनके बूढ़े माता-पिता के अलावा भारी पुलिस फोर्स भी मौजूद थी। राम चन्दर के परिजन रात में अपने गाँव खाली हाथ लौटे थे, और बाकी बेटों के पुलिस के डर से फरार होने के कारण, उनके अन्य मृत्यु उपरान्त संस्कारों में भी काफी देर लगी।
नाबालिक राम चन्दर का नहीं रख पाए एक भी तस्वीर
राम चन्दर का परिवार आज भी पूरी तरह से धार्मिक है, और उनकी भक्ति स्थिर है। उनके भाई रामनाथ भगवान भोलेनाथ के अभीतपूर्व भक्त हैं, और परिवार के अन्य सदस्यों की भी सनातन धर्म में सच्ची आस्था है। रामनाथ यादव ने बताया कि अयोध्या में बन रहे भगवान राम के मंदिर से वह और उनका परिवार बहुत खुश हैं। बकौल रामनाथ ने अपने भाई की तस्वीरों को संजीवनी नहीं रख पाए, जोकि उनकी गरीबी और पुलिस की गोलियों की वजह से हुआ।
रामनाथ की इच्छा है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के दौरान उनके भाई राम चन्दर को भी स्मृति में रखा जाए। इस परिवार की आग्रह से, सरकार से उम्मीद है कि अयोध्या में राम चन्दर यादव के एक स्मारक की स्थापना की जाए। हम इसी श्रृंखला के अगले विशेष रिपोर्ट में 22 अक्टूबर 1990 के नरसंहार में बलिदान हुए अन्य रामभक्तों और उनके वर्तमान हालातों की जानकारी साझा करेंगे।